॥दोहा॥
विनय करौं कर जोड़कर मन वचन कर्म संभारि।
मोर मनोरथ पूर्ण कर विश्वकर्मा दृष्टि।।

॥चौपाई॥
विश्वकर्मा तव नाम अनुपम, पावन सुखद मनो अनरूपा।
सुन्दर सुयश भुवन दशचारी, नित प्रीति गावत गुण नर नारी।
शारद शेष महेश भवानी, कवि कोविद गुण ग्राहक ज्ञानी।
आगम सयाना। महाना, गुणातीत गुणवन्त निगम पुराण
जग महँ जे परमारथ वादी, धर्म धुरन्धर शुभ सनकादि।
नित नित गुण यश गावत तेरे, धन्य-धन्य विश्वकर्मा मेरे।
आदि सृष्टि महँ तू अविनाशी, मोक्ष धाम तजि आयो सुपासी।
जग मह प्रथम लीक शुभ जाकी, भुवन चारि दश कीर्ति कला की|
ब्रह्मचारी आदित्य भयो जब, वेद पारंगत ऋषि भयो तब।
दर्शन शास्त्र अरु विज्ञ पुराना, कीर्ति कला इतिहास सुजाना।
तुम आदि विश्वकर्मा कहलायो, चौदह विद्या भू पर फैलाया।
लोह काष्ठ अरु ताम्र सुवर्णा, शिला शिल्प जो पंचक वर्णन।
दे शिक्षा दुख दारिद्र नाश्ता, सुख समृद्धि जगमहँ परकाश्यो।
सनकादिक ऋषि शिष्य तुम्हारे, ब्रह्मादिक जै मुनीश पुकारे।
जगत गुरु इस हेतु भये तुम, तुम-अज्ञात-समूह हने तुम।
दिव्य अलौकिक गुण जाके वर, विघ्न विनाशन भय टारन कर।
सृष्टि करन हित नाम तुम्हारा, ब्रह्मा विश्वकर्मा भय धारा।
विष्णु अलौकिक जगरक्षक सम, शिवकल्याणदायक अति अनुपम।
नमो नमो विश्वकर्मा देवा, सेवत सुलभ मनोरथ देवा।
देव दनुज किन्नर गन्धर्व, प्रणवत युगल चरण पर सर्वा।
अविचल भक्ति हृदय बस जाके, चार पदारथ करतल जाके|
सेवत तोहि भुवन दश चारी, पावन चरण भवोभव कारी।
विश्वकर्मा देवन के देवा, सेवत सुलभ अलौकिक मेवा।
लौकिक कीर्ति कला भण्डारा, दाता त्रिभुवन यश मिस्त्री।
भुवन पुत्र विश्वकर्मा तनु धरि, वेद अथर्वण तत्व मनु करि ।
अथर्व वेद अरु शिल्प शास्त्र का, धनुर्वेद सब कृत्य आपका।
जब जब विपति पड़ी देवन पर, कष्ट हन्यो प्रभु का सेवन कर।
विष्णु चक्र अरु वह कमण्डल, रुद्र शूल सब रच्यो भूमण्डल।
इन्द्र धनुष अरु धनुष पिनाक, पुष्पक यान अलौकिक चाका।
वायुयान मय उड़न खटोले, विद्युत कला तंत्र सब खोले।
सूर्य चन्द्र नवग्रह दिगपाल, लोक लोकान्तर व्योम पटोला ।
अग्नि वायु क्षिति जल आकाश, आविष्कार सकल परकाशा।
मनु मय त्वष्टा शिल्पी महाना, देवागम मुनि पंथ सुजाना।
लोक काष्ठ, शिला ताम्र सुकम्मा, स्वर्णकार मय पंचक धर्मा।
शिव दधीचि हरिश्चन्द्र भरा कृत युग शिक्षा पालेऊ सारा।
परशुराम, नल, नील, सचेता, रावण राम शिष्य सब त्रेता।
द्वापर द्रोणाचार्य हलासा, विश्वकर्मा कुल कीन्ह प्रकाशा।
मयकृत शिल्प युधिष्ठिर पायेऊ, विश्वकर्मा चरणन चित ध्यायेऊ ।
नाना विधि तिलस्मी करि लेखा, विक्रम पुतली दृश्य लेखा ।
वर्णनातीत अकध गुण सारा, नमो नमो भय टारन हारा।

॥दोहा॥
दिव्य ज्योति दिव्यांश प्रभु, दिव्य ज्ञान प्रकाश।
दिव्य दृष्टि तिह कालमह विश्वकर्मा प्रभास॥
विनय करो करि जोरि, युग पावन सुयश तुम्हार।
धारि हिय भारत रहे होय कृपा उद्गार।

॥छन्द।।
जे नर सप्रेम विराग श्रद्धा सहित पढ़िहहि सुनि है।
विश्वास करि चालीसा चौपाई मन करि गुनि है।