॥दोहा॥
जय जय श्री महालक्ष्मी कू मात तव ध्यान।
सिद्ध काज मम कीजिए निज शिशु सेवक जान॥

॥चौपाई॥
नमो महा लक्ष्मी जय माता, तेरो नाम जगत विख्याता।
आदि शक्ति हो मात भवानी, पूजत सब नर मुनि ज्ञानी।
जगत पालिनी सब सुख करनी, निज जनहित भण्डारन भरनी।
श्वेत कमल दल पर तव आसन, मात सुशोभित है पद्मासन ।
श्वेताम्बर अरु श्वेता भूषण, श्वेतहि श्वेत सुसजित पुष्पन।
शीश छत्र अति रूप विशाला, गल सौहे मुक्तन की माला।
सुन्दर सोहे. कुंचित केशा, विमल नयन अरु अनुपम भाषा
कमलनाथ समभुज तवचारी, सुरनर मुनिजनहित सुखकारी।
अद्भुत छटा मात तव वानी, सकल विश्व कीन्हो सुखरानी।
शांत स्वभाव मृदुलतव भवानी, सकल विश्व की हो सुख खानी।
महालक्ष्मी धन्य हो माई, पंच तत्व में सृष्टि राई।
जीव चराचर तुम उपजाए, पशु पक्षी नर नारि बनाए।
क्षितितल गणित वृक्ष जमाए, अमितरंग फल फूल सुहाए।
छवि बिलोक सुरमुनि नरनारी, करे सदा तव जय-जय कारी।
सुरपति औ नरपत सव ध्या, तेरे सम्मुख शीश नवाते ।
चारहु वेदन तव यश गाया, महिमा अगम पार नहि पाया।
जापर करहु मातु तुम दाया, सोई जग में धन्य कढ़ाया।
पल में राजाहि रंक बनाओ, रंक राव कर बिलम्ब न लोओ।
जिन घर करह मात तुम बासा, उनका यश हो विश्व प्रकाशा।
जो ध्यावे सो यह सुख पावै, विमुख रहे हो दुख उठावै।
महालक्ष्मी जन सुख दाई, धियाउ तुमको शीश नवाई।
निजजन जानिमोहिं अपनाओ, सुख सम्पत्ति दे सुख नसाओ।
ॐ श्री श्री जय सुखकी खानी, रिद्धिसिद्धि देउ मात जनजानी।
ॐ हीं-ॐ हीं सब व्याधि हटाओ, जनउन बिमल दृष्टि दर्शन।
ॐ क्लीं ॐ क्लीं शत्रुन क्षयकीजै, जनहित मात अभय वर दीजै।
ॐ जयजयति जयजननी, सकल काज भक्तन के सरनी।
ॐ नमो नमो भवनिधि तारनी, तरणि भवर से पार उतारनी।
सुनहु मात यह विनय हमारी, पुरवहु आशन करहु अबारी।
ऋणी दुखी जो तुमको ध्यावै, सो प्राणी सुख सम्पत्ति पावै।
रोग ग्रसति जो घ्यावै कोई, ताकी निर्मल काया होई।
विष्ण प्रिया जय-जय महारानी, महिमा अमित न जाय बखानी।
पुत्रहीन जो ध्यान लगावे, पाये सुत अति हसावे।
त्राहि त्राहि शरणागत तेरी, करहु मात अब नेक न देरी।
राहु मात विलम्ब न कीजै, हृदय निवास भक्त वर दीजै।
जानूँ जप तप को नहिं भेवा, पार करो भवनिध बन खेवा।
बिनवों बार-बार कर जोरी, पूरण आशा करहु अब मेरी॥
जानि दास मम संकट टारौ, सकल व्याधि से मोहिं उवारौ।
जो तव सुरति रहै लव लाई, सो जग पावै सुयश बड़ाई।
छायो यश तेरा संसारा, पावत शिव शम्भु नहिं पारा।
गोविन्द निशिदिन शरण तिहारी, करहु पूरण अभिलाष हमारी।

॥दोहा॥
महालक्ष्मी. चालीसा पढ़े सुनै चित लाय।
ताहि पदारथ मिलै अब कहै वेद अस गाय॥