॥दोहा॥
सिर नवाइ बगलामुखी, लिखू चालीसा आज।
कृपा करहु मोपर सदा, पूरन हो मम काज।।
॥चौपाई॥
जय जय जय श्री बगला माता, आदिशक्ति सब जग की त्राता।
बगला सम तब आनन माता, एहि ते भयउ नाम विख्याता।
शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी, अस्तुति करहिं देव नर-नारी।
पावन तन पर तव राजै, हाथहि मुद्गर गदा बिराजै।
तीन नयन गल चम्पक माला, अमित तेज प्रकटत है भाला।
रत्न-जड़ित सिंहासन सोहै, शोभा निरखि सकल जन मोहै।
आसन पीतवर्ण महारानी, भक्तन की तुम हो वरदानी।
पीताभूषण पीतहिं चन्दन, सुर नर नाग करत सब वृन्दन।
एहि विधि ध्यान हृदय में राखे, वेद पुराण सन्त अस भाखै।
अब पूजा विधि करो प्रकाशा, जाके किये होत दुख नाशा।
प्रथमहिं पीत ध्वजा फहरावै, पीतवसन देवी पहिरावै।
कुंकुम अक्षत मोदक बेसन, अबीर गुलाल सुपारी चन्दन
माल्य हरिद्रा अरु फल पाना, सबहिं चढ़इ धेरै उर ध्याना।
धूप दीप कपूर की बाती, प्रेम सहित तब करै आरती।
अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे, पुरवहु मातु मनोरथ मोरे।
मातु भगति तब सब सुख खानी, करहु कृपा मोपर जनजानी।
त्रिविध ताप सब दुःख नशावहु, तिमिर मिटाकर ज्ञान बढ़ावहु ।
बार-बार मैं बिनवउँ तोहीं, अविरल भगति ज्ञान दो मोहीं।
पूजनान्त में हवन करावै, सो नर मनवांछित फल पावै।
सर्पप होम करै जो कोई, ताके सचराचर होई।
तिल तण्डल संग क्षीर मिलावे, भक्ति प्रेम से हवन करावे।
दःख दरिद्र व्यापै नहिं सोई, निश्चय सुख सम्पत्ति सब होई।
फल अशोक हवन जो करई, ताके गृह सुख सम्पत्ति भरई।
फल सेमर का होम करीजै, निश्चय वाको रिपु सब छीजै।
गुरगुल घूत होमे जो कोई, तेहि के वश में राजा होई।
गुग्गुल तिल संग होम करावें, ताको सकल बंध कट जावै।
बीजाक्षर का पाठ जो करहीं, बीजमन्त्र तुम्हरो उच्चरहीं।
एक मास निशि जो कर जापा, तेहि कर मिटत सकल सन्तापा।
घर की शुद्ध भूमि जहे होई, साधक जाप करै तह सोई।
सोई इच्छित फल निश्चय पावै, यामे नहिं का संशय लावै।
अधवा तीर नदी के जाई, साधक जाप करै मन लाई।
दस सहस्त्र जप करै जो कोई, सकल काज तेहि कर सिधि होई।
जाप करै जो लक्षहिं बारा, ताकर होय सुयश विस्तारा।
जो तव नाम जपै मन लाई, अल्पकाल महँ रिपु हि नसाई।
सप्तरात्रि जो जापहिं नामा, वाको पूरन हो सब कामा।
नव दिन जाप करे जो कोई, व्याधि रहित ताकर तन होई।
ध्यान करै जो बय्या नारी, पावै पुत्रादिक फल चारी।
प्रातःसायं अरु मध्याना, धरे ध्यान होवे कल्याना।
कहे लगि महिमा कहाँ तिहारी, नाम सदा शुभ मंगलकारी।
पाठ करे जो नित्य चालीसा, तेहि पर कृया करहिं गौरीशा।
॥दोहा॥
सन्तशरण को तनय है, कुलपति मिश्र सुनाम।
हरिद्वार मण्डल बस, धाम हरिपुर ग्राम।।
उन्नीस सौ पिचानवे सन् की, श्रावण शुक्ला मास।
चालीसा रचना कियों, तव चरणन को टास।