आरती कामाक्षा देवी की ।

जगत् उधारक सुर सेवी की ॥

आरती गावत वेद पुरान कहानी ।

योनिरुप तुम हो महारानी ॥

सुर ब्रह्मादिक आदि बखानी ।

लहे दरस सब सुख लेवी की ॥

आरती दक्ष सुता जगदम्ब भवानी ।

सदा शंभु अर्धंग विराजिनी ।

सकल जगत् को तारन करनी ।

जै हो मातु सिद्धि देवी की ॥

आरती तीन नयन कर डमरु विराजे ।

टीको गोरोचन को साजे ।

तीनों लोक रुप से लाजे ।

जै हो मातु ! लोक सेवी की ॥

आरती रक्त पुष्प कंठन वनमाला ।

केहरि वाहन खंग विशाला ।

मातु करे भक्तन प्रतिपाला ।

सकल असुर जीवन लेवी की ॥

आरती कहैं गोपाल मातु बलिहारी ।

जाने नहिं महिमा त्रिपुरारी ।

सब सत होय जो कह्यो विचारी ।

जै जै सबहिं करत देवी की ॥

आरती