जय जय श्री बगलामुखी माता, आरति करहुँ तुम्हारी ॥टेक॥
पीत वसन तन पर तव सोहै, कुण्डल की छबि न्यारी।
कर-कमलों में मुदगर धारै, अस्तुति करहिं सकल नर-नारी। जय-जय...
चम्पक माल गले लहरावे, सुर नर मुनि जय जयति उचारी। जय-जय...
त्रिविध ताप मिटि जात सकल सब,भक्ति सदा तव है सुखकारी। जय-जय...
पालन हरे सृजत तुम जग को, सब जीवन की हो रखवारी। जय-जय...
मोह निशा में भ्रमत सकल जन, करहु हृदय महँ, तुम उजियारी। जय-जय...
संतन को सुख देत संदा ही, सब जन की तुम प्राण पियारी॥ जय-जय...
तिमिर नशावहु ज्ञान बढ़ावहु, अम्बे तुम ही हो असुरारी। जय-जय...
तव चरणन जो ध्यान लगावै, ताको हो सब भव-भयहारी। जय-जय...
प्रेम सहित जो करहिं आरती, ते नर मोक्षधाम अधिकारी॥ जय-जय...
॥दोहा।।
बगलामुखी की आरती, पढ़ै सुनै जो कोय।
विनती कुलपति मिश्र की, सुख-सम्पत्ति सब होय॥