एक शहर में एक सेठ- सेठानी रहते थे । किसी नगर में एक सेठ सेठानी थे । उनके पास खूब धन तो था लेकिन पुत्र नहीं था । तो सेठानी ने भादूड़ी बड़ी तीज का व्रत करके तीज माता से कहा कि हे नीमड़ी माता ! मेरे बेटा हो जायेगा तो मैं तेरे सवामण का सातु चढ़ाऊंगी । तीज माता की कृपा से नवें महीने ही सेठानी के लड़का हो गया । लेकिन सेठानी नीमड़ी माता के सातु चढ़ाना भूल गई । सेठानी के सातो बेटे हो गये । लेकिन सेठानी ने सातु नहीं चढ़ाया । पहला बेटा विवाह योग्य हुआ । लड़के का विवाह हुआ । पहले दिन सुहाग रात को सोया तो आधी रात को लड़के को सांप ने आकर डस लिया और वह मर गया । उस तरह उसके छ: बेटों का विवाह हुआ और छहों बेटे मर गये । सातवें बेटे की सगाई आने लगी लेकिन सेठ सेठानी मना करते रहे । गाँव वालों के बहुत कहने व समझाने पर सेठ शादी के लिए तैयार हो गया । तब सेठानी ने कहा कि गाँव वाले नहीं मानते हैं तो इसकी सगाई बहुत दूर देश में करना । सेठजी सगाई करने के लिए घर से चले और चलते-चलते बहुत दूर एक गाँव में आए ।

वहाँ चार पाँच लड़कियाँ खेल रही थी जो मिट्टी के घर बनाकर तोड़ रही थी । उनमें एक लड़की ने कहा मैं तो अपना घर नहीं तोड़ेंगे । सेठ वहां खड़ा देख रहा था सेठ ने सोचा यह लड़की समझदार है । खेलकर लड़की घर जाने लगी तो उसके पीछे-पीछे लड़की के घर चला गया । लड़की के माँ-बाप से मिला बातचीत करके लड़के की सगाई उस लड़की के साथ पक्की कर दी । विवाह का भी पक्का कर दिया और घर आकर विवाह की तैयारी करने लग सेठ बरात लेकर गया और सातवें बेटे का विवाह हो गया । बरात विश हुई लम्बा सफर होने के कारण माँ ने लड़की से कहा कि रास्ते में य सातु व सिग डाल रही हूँ । रास्ते में कहीं नीमड़ी पर शाम को नीमडी माता की पूजा करके सातु पास लेना व कलपना निकालकर सुसरा जी को दे देना । धूमधाम से बारात चली । रास्ते में तीज का दिन आया ससुरजी बहु को खाने के कहा तो बहु ने कहा कि आज तो मेरे तीज का उपवास है । शाम को नीमड़ी माता का पूजन करके ही भोजन करूँगी । एक कुए पर नीमड़ी नजर आई तो सेठ जी ने गाड़ी रोक दी । बहू नीमडी माता की पूजा करने लगी। नीमड़ी माता पीछे हट गई तो बहू ने कहा हे माता मुझसे पीछे क्यों हट रही हो । इस पर नीमड़ी ने कहा तेरी सास ने बोला पहला पुत्र हो जाने पर सातु चढ़ाऊंगी पर याद नहीं रखा । बहू बोली माता हमारी भूल माफ करो मैं आपको सातू चढ़ाऊगी । मेरे छओं जेठ को वापिस लौटा दो । व मुझे पूजा करके दो । माता नव वधू की भक्ति व श्रद्धा को देख प्रसन्न हो गई । बहु ने नीमड़ी माता का पूजन किया और चान्द के अर्ध दिया, सातु पास लिया और सुसराजी को कलपना दे दिया। प्रात: होते बारात अपने नगर लौट आई। बहू ने ससुराल के घर में प्रवेश किया और उसके छओ जेठ प्रकट हो गये । उनको सभी को गाजे-बाजे से सामे लियो । सासू बहू के पैर पड़ने लगी तो बहू बोली!

सासूजी आप ये क्या करते हो, बोलवा करी सो याद करो । सासू बोली "मुझे तो याद नहीं तू ही बतादें ।" बहू बोली आपने नीमड़ी माता के सातू चढ़ाने का बोला था सो पूरा नहीं किया । तब सासू को याद आई। बारह महीने से कजली तीज आई, सवा सात मण का सातू तीज माता के चढ़ाया । गाजा-बाजा से नीमड़ी माँ की पूजा करी और बोलवापूरी की । हे भगवान उनके आनन्द हुआ वैसा सबके होवे । खोटी की खरी अधूरी की पूरी ।

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